कांकरेज प्रजाति
कांकरेज गाय और बैल दोनों ही भारत की मूल नस्लों में से एक हैं । इनकी खूबसूरत बनावट इन्हें दूसरी नस्लों से अलग करती है । हड़प्पा सभ्यता से मिली पत्थर की नक्काशी और गोजातीय मूर्तियां कांकरेज की छवि में ही मिलीं हैं । इसीलिए ये नस्ल भारत की प्राचीन नस्ल भी कही जाती है । इन नस्ल का प्रयोग दूसरी स्वस्थ नस्लों के निर्माण में किया जाता है । 1870 के समय कांकरेज बैल और गायों का ब्राजील में निर्यात किया गया । यहां उनका उपयोग एक नई नस्ल को बनाने में किया गया, ये नस्ल गुजेरा नस्ल कहलाई । इसी नस्ल की गायों से बाद में अमेरिकी गायों की नस्ल विकसित की गई ।
दोहरे उद्देश्य की पूर्ति
कांकरेज गाय और बैल दोनों ही किसान परिवारों के पसंदीदा हैं । ये नस्ल कृषि के काम में और दूध के लिए, यानी दोहरे काम के लिए इस्तेमाल में लाई जाती है । हिंदू धर्म में गाय का स्थान भगवान के स्थान पर है । कांकरेज गायों को भी पूजा जाता है ।
कांकरेज नस्ल की उत्पत्ति
कांकरेज गायें गुजरात के बनासकांठा जिले के कांकरेज क्षेत्र से संबंध रखती हैं । इसके साथ ही गुजरात के मेहसाणा, कच्छ, अहमदाबाद, कैरा, साबरकांठा में भी ये नस्ल पाई जाती है । राजस्थान के जोधपुर और बाड़मेर जिलों में भी कांकरेज गाय और बैल बहुतायत में हैं । कच्छ के दक्षिणपूर्व रण में इसकी उत्पत्ति मानी गई है । मवेशियों में ये सबसे भारी प्रजाति है ।
कांकरेज प्रजाति के और नाम
कांकरेज गाय को कई नामों से पुकारा जाता है । स्थानीय लोग इसे अलग-अलग नाम से पुकारते हैं, जिनमें से कुछ नाम हैं वगाडि़या, वागड़, बोनई, नागर, तालाबड़ा । इसका मूल नाम कांकरेज गुजरात के कांकरेज तालुका से मिला है ।
कांकरेज गाय की शारीरिक विशेषताएं
रंग
कांकरेज गाय का रंग हलके भूरे से लेकर चांदी के रंग जैसा हो सकता है । सिल्वर ग्रे, आयरन ग्रे और स्टील ब्लैक यानी काले रंग में भी इस नस्ल के पशु पाए जाते हैं ।
बहुत भारी भरकम और गठीली बनावट वाली इस नस्ल की गायें और बैल दोनों की सींग होती हैं । ये नस्ल अपने अर्धचंद आकार के सींगों के लिए मशहूर है, मोटे और मजबूत सींगों वाली ये नस्ल दूसरी नस्ल से बेहद खूबसूरत लगती है । इनके सींग तीखे होते हैं । जानकारों के अनुसार भारत की ये देसी गाय यानी कांकरेज गाय मूल नस्लों में सबसे भारी नस्ल की है । इतना मजबूत शरीर होने के बावजूद इस नस्ल के पशु सीधे, सरल और शांत स्वभाव के होते हैं । कांकरेज गायों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अचछी होती हैं ।
तापमान और वातावरण
शुष्क वातावरण की ये नस्ल गर्मी बर्दाश्त करने की क्षमता रखती है । इनके शरीर के बाल बहुत छोटे और मुलायम होते हैं । कांकरेज का अच्छा लालन पालन कर इसे कहीं भी पाला जा सकता है । ये उच्च तापमान में रह सकती हैं, दूध उत्पादन पर भी इसका असर नहीं पड़ता है ।
ऊंचाई और वजन
कांकरेज गाय और बैल जबरदस्त कद काठी के होते हैं, इस नस्ल के नर यानी बैल का भार 500 से 550 किग्रा और मादा यानी गायों का भार 325 से 400 क्रिग्रा तक होता है । नर की ऊंचाई 158 सेमी. तो वहीं मादा की ऊंचाई 133 सेमी. होती है ।
कांकरेज गाय की दूध उत्पादन क्षमता
कांकरेज गाय शुष्श्क प्रदेश में अच्छी दुग्ध उत्पादक नस्ल मानी जाती है । इस नस्ल की गायें हर दिन 8 से 10 लीटर तक दूध देती हैं । ये गायें एक ब्यांत में 1750 लीटर तक दूध दे सकती हैं । दूध उत्पादन इससे अधिक भी हो सकता है, ये गाय के पोषण पर निर्भर है ।
दूध की गुणवत्ता
कांकरेज गाय के दूध में 4.8 फीसदी फैट पाया जाता है । जो कि गुड फैट होता है । देसी गायों का दूध मानव जाति के लिए वरदान मांगा गया है ।
कांकरेज गाय को लेकर NDRI– NDRI-National Dairy Research Institute करनाल के आंकडें कुछ इस प्रकार हैं –
- Overall Lactations: 1,746 kg (range 1,097 to 3,194 kg)
- Lactation Time Period: 294 days (range 275 to 350 days)
- Calving Interval around 490 days (range 407 to 639 days)
- Avg. Age at First Calving: 1,438.1±10.95 days (range 1,030 to 1,700 days).
- Milk Fat is around 4.8% (range 4.66 to 4.99%)
बीमारियों में फायदा
गाय का दूध वर्तमान समय की बीमारियों को रोकने, प्रभाव कम करने में सहायक है । खासतौर से लाइफस्टाइल डिजीज जैसे डायबिटीज, हाई ब्लडप्रेशर, ब्लड शुगर में ये बहुत फायदा पहुंचाता है । देसी गाय के दूध का नियमित सेवन रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है । देसी गाय के दूध का सेवन बच्चों के मानसिक विकास के लिए लाभदायक माना गया ।
कांकरेज बैल
गठीली बनावट, ऊंचा कद, भारी भरकम शरीर और बहुत ही खूबसूरत लगने वाले अर्धचंद्राकार सींग । कांकरेज बैल अपनी मजबूती के कारण कृषि कार्यो में इस्तेमाल किए जाते हैं । इसके साथ ही वजन ढोने, परिवहन के लिए गाड़ी आदि में भी जोते जाते हैं ।
कांकरेज गाय का चारा
कांकरेज गाय यूं तो शुष्क प्रदेश में पाई जाती हैं, ये उसी के अनुकूल ढली हुई हैं । उच्च तापमान की सहनाक्ति रखने वाली इस नस्ल की गायें और बैल को सूखा चारा पसंद होता है । हरे चारे और दाना मिश्रण को भी गाय को जरूर देना चाहिए ।
मुख्य प्रदेश
कांकरेज गायें गुजरात के बनासकांठा, मेहसाणा, कच्छ, अहमदाबाद, कैरा, साबरकांठा में पाई जाती है । इसके अलावा राजस्थान के जोधपुर और बाड़मेर जिलों में भी कांकरेज गाय और बैल बहुतायत में हैं ।
कांकरेज नस्ल की गाय की कीमत
कांकरेज नस्ल अपनी दोहरी विशेषता के कारण ऊंची कीमतों पर मिलती हैं । एक गाय की कीमत 1 से ढाई लाख रुपये के बीच हो सकती है । लेकिन वर्तमान में कोरोना महामारी के कारण पैदा हुए आर्थिक संकट के कारण कीमतें कम हुई है । आपको बता दें किसी भी नस्ल की गाय की कीमत इस पर भी डिपेंड करती है कि आप कहां से, कितनी उम्र की और कैसी गाय खरीद रहे हैं ।यदि कोई पशुपालक गाय पालने के लिए खरीदना चाहता है तो नीचे दिए गए लिंक पर जाकर एक बार जरूर देखें, यहां आपको देसी गायों की उन्नत किस्म से जुड़ी समस्त जानकारी उपलब्ध होगी –